मोबाइल में समय देखा, छ: बज रहे थे, उठी जल्दी-जल्दी काम निपटाया, और अपनी बेतरतीब ज़िन्दगी को सँभालते – सँभालते पहुँच गयी बस स्टैंड पर, मुझे लगा आज तो बस निकल गयी, अब न जाने कब तक इंतज़ार करना पड़ेगा। तभी सामने देखा तो वो चश्मेबद्दूर श्री मान जो रोज़ मेरे ही स्टॉप से चढ़ते थे यहीं खड़े थे, तस्सली हुई के बस तो नहीं छुटी है । हम एक- दूसरे को देख मुस्कुरा दिए।
सोचा-
“इतना-सा ही तो रिश्ता है मेरा तुम्हारा,
एक- दूजे को देख कर यूहीं मुस्कुरा देते हैं
हम-तुम… ”
मुझे मेरे ख्यालों कि दुनिया से बहार निकाला पीछे आ रही गाड़ी के हॉर्न ने। अपनी दुनिया में आते ही, मैंने जल्दी से खुल्ले पैसे निकाले और टिकट के लिए दौड़ी, पर भीड़ थी, जैसे ही मेरा नंबर आया, वैसे ही इधर बस आ गयी।
बस में चढ़ने के पहले एक बार मेरी ओर जल्दी आने के लहज़े से देखते हुए चश्मेबद्दूर श्री मान बस के अंदर हो लिए।
मैंने टिकट खिड़की पर कहा, “जल्दी भैया बस निकल जाएगी।” उन्होंने एक टक टेढ़ी नज़रों से देखा और फिर थोड़ा जल्दी करते हुए टिकट दिया, इधर पर्स गिर रहा था, २० का नोट उड़ते -उड़ते वापिस हाथ लगा, और उधर बस चलने को तैयार। जैसे- तैसे अपने सामान को सँभालती बस में चढ़ी ही थी, की एक दम से ब्रेक लगा और मैं गिरने से बचने की कोशिश ही कर रही थी, की उसकी हँसी मेरे कानों तक पहुँची।
मैंने गुस्से से उसकी ओर देखते हुए कहा, “तुम्हारे ही कारण गिरते – गिरते बची आज मैं, रुकवा नहीं सकते थे बस दो मिनट?” उसने अपनी हँसी रोकते हुए गंभीर भाव से आगे की ओर इशारा करते हुए, आगे जाने को कहा, अपने ऐसे रुख से हतप्र्भ मैं आगे तो चली गयी, पर यही सोचती रही की भला किसी अजनबी से ऐसे कौन बात करता है… ? ठीक है, अजनबी तो नहीं, पर हम कोई जान-पहचान वाले भी तो नहीं हैं। मन में चलते अंतर्द्वंद्व के बीच, पीछे पलटने की हिम्मत नहीं हुई , क्या सोच रहा होगा वो मेरे बारे में? पर अपने ऐसे रूखे व्यव्हार के लिए माफ़ी तो माँगनी चाहिए। बड़ी हिम्मत करते हुए पीछे पलटी तो उसे अपनी ओर देखते पाया, वो मुस्कुरा दिया, मैं भी एक हलकी-सी मुस्कान देकर आगे देखने लगी… सोचा उतरते हुए सॉरी कहूँगी।
स्टॉप पर उतरते ही मैं सॉरी कहने को बढ़ी… उसने अपना विसीटंग कार्ड दिया और मैंने अपना… “शाम को मिलते हैं” कह कर वो अपने रास्ते निकल गया और मैं अपने…
सोचा सॉरी का मौका ही नहीं मिला, कार्ड देखा, मेरे कार्ड पर लिखा था “हायहुति लेखिका”
पढ़कर छः इंच की मुस्कान आ गयी…
उसके कार्ड पर मैंने लिखा था “चश्मेबद्दूर श्री मान”…
अब सॉरी कहने का कोई औचित्य नज़र नहीं आ रहा था, बस शाम होने कि जल्दी थी, वो मुलाकात अपने आप में ही अपनी कई यादें बना चुकी थी।
Accha toh yesb chl rha h aapki zindgi me.. 😀 😀
haha.. are nhi yr 😀 Ye to likhne ka junun hai jo hume ghere betha hai 🙂
Nice story, good job
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Thanks Rishabh 🙂