दीपावली की प्रतिज्ञा

दीपावली – वैभव और आनंद का उत्सव।

प्रत्येक भारतीय की पुरजोर कोशिश रहती है की इस त्योहार पर हर चहरे पर मुस्कान आये ।
आप पूजा करते समय धन, ऐश्वर्य, सुख – संपत्ति की कामना करते हैं और बाहर जाते ही अपनी ख़ुशी का प्रदर्शन पटाखे जला कर करते हैं। आप आज पटाखों के रूप में खुशियाँ लुटाने के चक्कर में कितने लोगो की सेहत के साथ खेल रहे हैं , इस बात को आप जानते हुए भी नज़रअंदाज़ करते  हैं।

हेल्थ इज वेल्थ को जानते हुए भी न खुद के स्वास्थ्य की और ना ही अपने परिवार की  कोई परवाह करते हैं।

आपने लक्ष्मी पूजा कर धन के साथ थोड़ा-सा भी बुद्धि-रुपी धन माँगा होता तो शायद आँखों के सामने पटाखों में अपने धन को जलता देख आपका विवेक एक बार आपसे ज़रूर पूछता की “पटाखों और खुशियों का आखिर रिश्ता ही क्या है ?” आप ज़रूर सोचेंगे की मुझे इतना ज्ञान बाँटने का हक़ किसने दिया, मेरे घर पर, ऐ.सी. अथवा फ्रीज़ तो होगा ही, मैंने खूब पटाखे चलाये होंगे अर्थात पर्यावरण में प्रदुषण तो मेरे कारण भी हो रहा है।  हाँ ,फ्रीज तो है, पर उसके बिना काम नहीं चल सकता, मेरे पास गाड़ी होते हुए, गत 5-6 सालों से मैंने तो पटाखे नहीं जलाये। इसका ये मतलब बिलकुल नहीं की मेरे पास पैसे नहीं, पर मेरे पास पैसों को जलते देखने का जिगर नहीं है। पूजा के बाद घर से बाहर निकलते ही देखा, इतना धुआँ था मानो कोहरा छाया हुआ है। इसका तो इलाज़ था घर से बहार मत जाओ, पर जो दृश्य दूसरे दिन देखा, वो अचंभित करने वाला था। 

दूसरे दिन तकरीबन सुबह छह बजे का दृश्य कुछ ऐसा था, आप में से जो अति-धनवान हैं, जो रात को पटाखे में ढेर सारे  पैसे जला कर थक गए थे, वे तो उठे ही नहीं थे।

जो अभी भी अपनी पुरातन परम्पराओं से जुड़े हैं, उन्होंने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए अपने घर की दरिद्रता दूर करने का टोटका करते हुए, अपने घर के सामने का कचरा साफ़ किया, उसका ढेर बनाया, उस पर झाड़ू रख वहाँ दीपक जलाया और कचरे में एक बार फिर से आग लगा दी, ताकि बचा-कूचा कचरा भी जल जाये।

यह तो था हम पढ़े लिखों का ज्ञान, यहीं अनपढ़ गरीब बच्चे सुबह से ढेला ले कर आपके धन का कचरा बटोर रहे थे, उन्ही में से कुछ छोटे बच्चे उन जले हुए पटाखों में से बिना जले पटाखे ढूँढ रहे थे।

घर आकर खबर सुनी तो पता चला की दिल्ली का वातावरण सूचकांक 400 तक पहुँच गया था दिवाली के बाद। (सांस लेने हेतु अधिकतम 150 ही उचित है)
आपके घर की दरिद्र्ता तो दूर हो गयी, पर आपकी मानसिक दरिद्रता कब और कैसे दूर होगी ? हम पढ़े-लिखों में से कुछ तो रात को गजब प्रदूषण करने के बाद सुबह योगा करने बगीचे में भी पहुँचे थे, आप ही सोचिये इससे शुध्द हवा और कहाँ मिलेगी? 


मैं तो प्रतिज्ञा ले चुकी हूँ दीपावली पटाखों के जगह खुशियों से मनाने की, अब आपकी बारी है।

आशा है की आप इस बारे में कुछ सोचेंगे, और इस दीपावाली आप जो कर रहे हैं , उसमें खुशियों से जुड़े भाव व लॉजिक को जानने की कोशिश करें।  जब जागो तब सवेरा, अगर आज अक्कल आ जाये तो वो काम आज से भी शुरू किया जा सकता है। क्या पता, शायद इसी तरह आप, अपनों के लिए कुछ शुद्ध हवा बचा पायें।
(इसे पढ़ कर जिनके मान-सम्मान को ठेस पहुँची हो, उनसे क्षमाप्रार्थी हूँ। )

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