How Do Your Words Affect Others?

It’s only Words, and Words are all I have to take your heart away

It’s one of my favorite tracks. And, very close to my heart. As a writer, I literally have nothing but Words in life & Words for life.
Shaping my feelings in words, voicing my words with podcasts, finding words to voice numerous brands’ offerings, adding more words to my vocab, and tuning to more words (Ted talks & podcasts) – that’s what I’ve been doing for the past 7 years. 
Other than formal learning of writing styles, one thing I’ve learned is – Words can make or break you…

Bullying a plant like people bully friends & colleagues – Just with few words they felt saying
Even if you say bad words to a plant for a longer time, it will slowly and gradually die. I have read this in some self-help books and experienced that in some parts of my life as well. “You can never take back the words that come out of your mouth,” they say.
And that’s so true. Both in personal and professional space.
“Your words speak for you.”
How you say things, tell your story to other people, and present yourself has much to do with what you are in person. There is a way to convey everything you want to say; when not done right, it hurts people. Later, all you are left with is apologizing and saying, “I didn’t mean it that way.”
But does it make any difference?
Of course not; you’ve said what came out of your mouth without thinking about its impact on the other person. None of the medicines can heal that wound. Your words are powerful enough to change someone’s perception of life; likewise, they can penetrate someone’s soul. That’s the reason “You become what you perceive” and “You give, what you receive.”
There are plenty of speakers, influential people, and leaders out there. The latest addition to this is social media influencers. Some of whom we like to listen to and others to whom we are made to listen dutifully. Why do we listen? Mostly because either we are bounded to or we like their words. Maybe they are not saying anything extraordinary, but it’s the delivery style, tone, and pattern that you are fascinated with. You gravitate toward good words and develop resistance against bad ones.
We, humans, are easier to get influenced and prone to get affected. That’s why you can see the memes going viral, and Instagram feeds filled with reshares. You knowingly and unknowingly adopt the principles and belief systems of everyone you listen to and accompany with.
You never know your words are impacting whom in what possible way. And none of us want to shatter anyone’s dreams, ideas, and beliefs in pieces.
Ending this on the note, “Be mindful when it comes to your words.”

Wounds

I love to scratch my wounds, 

To make myself feel that they are new, 

To believe they are as green as grass, 

To understand they had a deep impact & they still have, 

To explore more of the infections created around them, 

To see how much more depth & clarity it has added to my life, 

To know how many times I have been there & back to square one, 

To get answers to how, when, and why I got these wounds on the sacred part of my body, 

My Heart! 

Yes, you read it right! 

I love to scratch my wounds…

Because it’s the only way I could feel the grief in my life.

And, my grief is the only thing that makes me STRONG

Silence

बस! वो खामोशी

क्या तुम्हें याद है की हमारी बातचीत कैसे शुरू हुई? मुझे तो याद नहीं, शायद तुम्हें याद हो! यही तो होता है ना हमारे बीच, जो मैं भूल जाती हूँ तुम्हें याद होता है और जो तुम भूल जाते, वो बखूबी याद रखती हूँ। 

दिन, तारीख़, महीना, पता नहीं। पर, हाँ, वो वाकिया याद है जहाँ से बात-चीत शुरू हुई। मगर, सच में हमारी बातों का  सिलसिला इतना लम्बा चलेगा, ये तो नहीं सोचा था। 

मुझे याद है तो ये बात की जब पहली बार हमारी बातचीत शुरू हुई थी, तो बातें ख़त्म नहीं हुई थीं। घंटों तुमसे बात करने के बाद भी तुम्हें सुनने की इच्छा ख़त्म नहीं हुई थी और मेरी ज्ञान के मोती बाँटने वाली शाला में तुम बोर भी नहीं हुए थे। 

हमारी बातों में कुछ पूरा नहीं था। तुम्हारी और मेरी ज़िंदगी का अधूरा ज़िक्र… हम एक-दूसरे को जानते थे, मगर इतना नहीं कि सब पूरा कह पाते थे। वो अधूरा ज़िक्र अधूरा हो कर भी, इतना पूरा था, की मानों हम न समझते हुए भी एक-दूसरे की बातों को काफ़ी कुछ समझ पा रहे थे। 

बातों की गहराई से ज़्यादा अधूरापन गहराया हुआ था… मैं खुश थी, तुम खुश थे। सच में, मेरे लिए केवल ये ख़ुशी है, जो बहुत मायने रखती है। 

ये खुशी एक-दूसरे को पाने की बिल्कुल नहीं थी, एक-दूसरे के साथ होने की बिल्कुल नहीं थी। खुशी थी तो बस समझे जाने  की, बे-पर्दा बातें कह पाने की, और मौन साझा कर पाने की! उस रात कितनी दफ़ा मैं ख़ामोश थी, और कितनी दफ़ा तुम मौन। 

वक्त के साथ बातें तो कई लोगों से होती हैं, कई तरह की होतीं हैं, किन्ही से तुम दर्द बाँट सकते हो, किन्ही से ख़ुशियाँ; मगर खामोशी सब के साथ नहीं बाँटी जाती। 

ऐसा कोई नियम नहीं है, मगर हर कोई खामोशी को भाँप नहीं पाता। ज़्यादातर लोग मौन को अधूरा और अकेला समझते हैं। मगर खामोशी में कितने शब्द हैं, ये सबको थोड़ी बतलाया जा सकता है। 

तुम्हें याद है न, मैं भूल जाती हूँ। तो हमारी बातों के फ़ेहरिस्त में से तुम मुझसे कुछ भी पूछ लो, मुझे याद नहीं। मगर वो केंटिन की पुरानी आवाज़ करती हुई मेज़ पर बैठ कर तुमने जितने क़िस्से सुनाए थे, वो मुझे बखूबी याद हैं। वो तुम्हारी किताबों के किरदार और उनकी कहानियाँ बखूबी याद हैं मुझे, जिन्हें सुनते हुए मैं आँख मूँद लेती थी और तुम मुझे झिड़की लगाते कहते थे की “सो गयी न, मैं ये कहानियाँ तो पेड़ों के लिए पढ़ रहा हूँ?”

अब तक तो तुम्हें पता हो चला है की मैं तुम्हें सताने को ही आँखें मूँदती हूँ। तुम्हारी झिड़की मुझे बहुत लुभाती है। और सच कहूँ तो बंद आँखों के साथ तुम्हारी आवाज़ और कहानियों के साथ हो रहे उसके उतार चड़ाव को महसूस करना और सरल हो जाता है। मुझे तुम्हारे किरदारों से लगाव है, क्योंकि तुम्हारे साथ वो भी कभी-कभी ख़ामोश हो जाते हैं। 

यूँ तो मुझे तुम अक्सर chatterbox कह कर चिढ़ाते हो, मगर मुझे खुशी है की तुम मेरी खामोशी को भी बातों की तरह ही समझ पाते हो। बस! वो लम्बे रास्तों की खामोशी, हमारी कॉफ़ी, और तुम्हारी कहानियाँ, ज़िंदगी के पूरे होने का एहसास दिलाने के लिए काफ़ी हैं।